प्रतीक चिन्ह में प्रदर्शित चित्रों एवं प्रतीकों का निम्नवत अर्थ है-
- राजस्व परिषद मुख्यतः कृषि तथा सहवर्ती क्रियाओं से सम्बन्धित भूमि विषयक प्रकरणों के विनियमन का कार्य करते हैं। अथर्व वेद के "भूमि सूक्त" की इस सूक्ति "सा नो भूमिर्वर्धयद् वर्धमाना" को वृत्त के नीचे प्रदर्शित किया जाये, जिसका अर्थ है- "वह भूमि स्वंय को धन-धान्यादि से सम्पन्न करती हुई अपने आश्रित सम्पूर्ण प्राणियों को अन्नादि से सम्पन्न करे" जो राजस्व प्रशासन के लिए एक प्रेरणात्मक सुसंगत दर्शन होगी।
- चूंकि प्रदेश में 18 राजस्व मण्डल हैं, जिनका राजस्व प्रशासन का प्रबंधन राजस्व परिषद के माध्यम से ही सम्पादित होता है, अतः वृत्त के दोनो तरफ नौ-नौ धान की बालियां प्रदर्शित की गई हैं। धान की बालियॉ कृषि उत्पादन को प्रदर्शित करती हैं।
- कृषि क्षेत्र में अभिलेखों के आधुनिकीकरण को दर्शाने हेतु वृत्त में "ई-अभिलेख" खण्ड में मोबाइल के साथ-साथ टै्रक्टर दिखाया गया है, जो यह प्रदर्शित करता है कि उत्तर प्रदेश के सभी राजस्व अभिलेख यथा खसरा, खतौनी व नक्शा आदि को डिजिटलाइज कर ऑनलाइन कर दिया गया है। इस प्रकार कृषि तकनीक के साथ किसान को भूमि अभिलेख तकनीक भी उपलब्ध है।
- न्याय व्यवस्था में तुला का विशेष प्रतीकात्मक महत्व है, जो न्याय की परिशुद्धता को दर्शाता है। राजस्व न्याय व्यवस्था में राजस्व परिषद चूंकि सर्वोच्च न्यायिक संस्था है अतएवं यह इसका भौतिक सिद्धान्त है।
- पुस्तकों के द्वारा राजस्व परिषद "कृषि भूमि" के प्रबन्धन सम्बन्धी अधिनियमों को हाईलाइट किया गया हैं। पुस्तके विधि का विधान (Law) हैं एवं तुला न्याय (Justice) है।
- कृषि भूमि के आधुनिक प्रबंधन में पुराने संयत्रों यथा गुनिया व जरीब के स्थान पर ड्रोन का प्रयोग यह प्रदर्शित करता है कि अब प्रदेश में नयी तकनीकों एवं नवाचार के माध्यम से एक नए युग का सूत्रपात हो रहा है।
- पॉच रंगो के विन्यास मे लोगो (प्रतीक चिन्ह) प्रस्फुरित हो रहा है- श्वेत, श्याम, पीला, केसरिया एवं हरित। यह भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं।
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